Wednesday, August 4, 2010

अखिल ब्रह्मांडीय सौदर्य स्पर्द्धाओं की नहीं वह मोहताज

मैं कवि हूं
कल्पना करने का
वाल्मीकी,तुलसी,कबीर,सूर
मीरा,रैदास,मीर तकी मीर,गालिब के
जमाने से मेरा हक बनता है।
सदियों से स्त्रियों के चेहरे की
तुलना चांद से
की जाती रही है
लेकिन मैं उन तमाम परिकल्पनाओं को
ध्वस्त करता हुआ कहता हूं
आसमान में चांद नहीं सिर्फ
अकेली तू है
अपनी नादानियों बचकानी
हरकतों,कम तनख्वाह में घर भर का
पेट भरने की दिक्कतों
रोजमर्मा की तकलीफों के साथ
मुझे नज़र नहीं आता
बादलों की ओट में ढंका
जद्दोजहद के बाद उभरता
चांद कहां है
सिर्फ तू ही तू है तू...
तेरे गाल से ओंठ पर होती
अनंत तक जाती
काले कजरारे बादल की इक
दुबली पतली नन्हीं सी रेख ।
कितने दृश्य बदलता है
तेरा चेहरा
टैलकम,लिपिस्टिक,बिंदिया
तू किसी अखिल ब्रह्माण्डीय
सौंदर्य स्पर्द्धा की कब रही मोहताज
तूने नहीं ली किसी मोनालिसा से
उधारी में मुस्कान
जानेमन क्लियोपेटा
तेरे घर का पानी भरे ।
और क्या कहूं
मैं नाचीज इसके आगे ...।

Sunday, November 29, 2009

गणेश

इनकी चार भुजाएं
ये लंबी सूंड
इत्ता भारी पेट
चलते होंगे किस तरह
आले में बैठे हैं
धूल के बीच ।
मैंने उससे पूछा
वह आंसू टपकाती रही
अतीत में रही किसी व्यथा से
अपनी करूणा में ।
अंधेरे में उसे टटोलते
मुझे अचानक लगा
यह अंगुली उसकी नहीं
अगरबत्ती के किसी कारखाने से
अभी कुछ देर पहले लौटी
एक औरत की है
जो मुझे एक बिलात दूर सोई
अब हिचकियां लेने लगी ।
सूंड और दो पैर उठाए
मैं हाथी था अपनी हताशा में
चिंघाड़ता पूरा जंगल था
उस रात सन्नाटे में
फटकारे जा रहे असंख्य सूप
दिशाओं में उड़ रहा धान ।
हवाओं की चादर तनी थी
समेट रही करोड़ों अंगुलियां
भरे थर पस के पस
भूसे बगदे बालियों से घिरा मैं ।
मुंह ढांपे एक
गरीब सपना था
मेरी चारपाई पर ।
झुर्रियोंदार अंतरिक्ष तक
फटा प़ड़ा था
भूख का पेट ।
नृत्य करते मोदक बांद आए
हारे थके उसके आले में अब
आ बैठs गणेश ।
मैं रोज़ अगरबत्ती सा
सुलगता हूं
उसकी फटी बिवाई वाली आंखों में ।

देह का संगीत

वह अंतिम बार
मेरे सीने से लगी
सर्द रातें
साये के बिना बारिश
तपती धूप में
वह याद आई ।
मुझे सुन रही होगी
इस वक्त भी
किसी के सीने से सटी
मैं सितार नहीं
सरोद नहीं
सारंगी नहीं
बंसी नहीं
फिर भी
बजने से पहले
अनंत तक उसके लिए
देह मचलती रही ।
00
ढेरों काम

ढेरों काम
पड़े हैं उसके पास
टी वी देखना
स्वेटर बुनना
तीसरी मंजिल तक
पानी की बाल्टी पर
बाल्टी बन हांफना
कविता सुनने की
उसे फुर्सत नहीं ।
उसने सबक रटा
एक मेमने के
गले में
बस्ता लटकाया
कंकरीली सड़क पर
निकल गई ।
मुझे छोड़ गई
दाल में करछुली
हिलान को ।
अब सोच रहा प्याज
कतरते हुए
उसके पैर में
चप्पल डाली कि नहीं ।
O

Saturday, November 28, 2009

बराक ओबामा से मेरी मुलाकात

कल रात मैंने पहले अमेरिकी अश्वेत
राष्टपति बराक ओबामा से मुलाकात की
उन्हें शानदार जीत पर बधाई दी
उम्मीद करते हुए कि वह भारत के
अच्छे दोस्त साबित होंगे
वैश्विक मंदी के दौर से सभी को
उबारेंगे और आउटसोंर्सिंग को लेकर
अपना रूख नरम करते हुए
देश की बेरोजगारी दूर करेंगे
भारत को खैरा ।त बांटने के मामले में
ओबामा से मेरा कहना था..
वह जरा भी कोताही नहीं करते।
साथ ही कहा कश्मीर समस्या
उनके कार्यकाल के दौरान सुलझाली जाए
तीसरी दुनिया के देशों में
हथियारों की होड़ाहोड़ी के बजाए
भूख गरीबी फटेहाली की
चिंता कीजिए ओबामा ।
दुनिया से आतंकवाद के खात्में की
जारी रहना चाहिए लड़ाई ।
मेरी बातों को वह बहुत
ध्यान से सुन रहे थे हालांकि
उनके पास वक्त की कमी थी
ओबामा से मुलाकात के दौरान
जिन मुद्दों को शामिल किया
फैहरिस्त लम्बी थी
और भावुकता भरे
क्षण भी आए इस बीच
लौटते वक्त ओबामा ने
मेरी पत्नी और दो बेटियों के
बारे में पूछा साथ ही
यह भी कि हायरसेकेण्डरी कर चुका
आपका बेटा क्या
कर रहा है इन दिनों ।
गिफ्ट में दिया ओबामा ने
बहुत सा सामान जो रह गया
वापसी की हड़बड़ी के कारण
वाइट हाउस में
सुबह अजान के समय नींद खुलने पर
मेरी हथेली में ओबामा से
हाथ मिलाने की गरमाहट थी
मुंडेर पर बैठे कौए ने कहाबाबू यह सुबह सुबह का सपना था ।
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योगाभ्यास
सर्दियों में सुबह सबेरे
अपनी बीस बाई बीस फुटी छत पर
कुछ कसरत वसरत करने लगा हूं
चतुर पड़ोसनें मुझे पट्टेदार चड्डी में
पता नहीं क्यों नंगा पुतंगा मान
भड़ाभड़ बंद कर लेती
अपने घरों के दरवाज़े खिड़कियां
उनके पति देव भी बंद कर
चिल्लाने लगते हैं

टीवी पर बाबा रामदेव भले ही
लंगोटी पहिने और बगली के बाल
साफ किए बिना कई बार इनकी तरफ
अपनी बाई आंख भी मार दिया करते हैं
उन्हें तो यही पड़ोसनें शातिर
मुस्कान समेत पचा जाती है
मेरी बड़ी बड़ी दाढ़ी नहीं
तो भी क्या हुआ
पतंजली के जमाने से चली आ रही
यौग पद्धतियां क्या केवल
इन बाबों चाबों के बाप की बवौतियां है
हाथों को ऊपर उठाने काकठिन आसन करते समय दूर
एक हवाई जहाज को आता देख
मैं शरमा गया कि आखिर
क्या सोचते होंगे विदेशों से आ रहे
राष्टपति प्रधानमंत्री और उनका लाबाजमा
दूरबीन से देख रहे हो
यही कि दिल्ली हवाई अड्डे पर तो
कटोरा लिए खड़े ही होंगे अनेकों
लेकिन यह भुखमरता
जिसके तन पर लत्ता तक नहीं
अभी से भीख मांगे चला आ रहा है।
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मिलने की तरह मिलना-

एक चांद बचा के रखना
मेरे लिए ढेरों सितारे
सूरज बचा के रखना
आकाश में बरसात के दिनों में
कभी कभार दिखने वाला
इंदधनुष भी बचा के रखना
पूरा बाग बगिया न सही
किसी पोथी पानडे
बरसों रखा एक फूल बचा के रखना
एक बच्चे की किलकारी
बचाना जरूर
चुटकी दो चुटकी ही सही
उम्मीद का कभी न छोड़ना संग
लाखों लाख शिद्दतों में भी
बचा के रखना उसे भी
अपने और मेरे लिए
विध्वंस के बावजूद
नामुराद हत्यारों से बचाना
बिदा मत होने देना
अपने चेहरे की जीवंत मुस्कान
मिलना मुझसे ठीक ठीक
मिलने की तरह मिलना ।
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अभिताभ नहीं हूं मैं
कि आप देवियों सज्जनों
मेरे स्वास्थ्य लाभ के लिए
प्रार्थना में जुट जाएं
फिल्में अधर में
निर्माता बेचारों के सौ करोड़
लटक जाए इतना तो नहीं
अभिताभ हूं मैं ।
पच्चीस करोड़ रूपए की लागत से
बन रही ''तीन पत्ती '' में
मैने नहीं किया काम
''शू बाइट '' में भी नहीं
'अलादीन ' में हर्गिज नहीं
पेट है लेकिन उसमें भूख के वक्त
मुआ मरोड़ उठता है
इसलिए नहीं कि आप देवियों सज्जनों
सिजदे में झुक जाएं
फिलवक्त ऐसा कुछ हुआ
सरकारी अस्पताल सलामत है
जहां डाक्टर मेरे स्वागत में नहीं
अपनी मांगों के लिए नारे लगा
हड़ताल करते मिलेंगे
माफ कीजिएगा अभिताभ नहीं हूं
इसीलिए कम्पाउण्डर ने दो गोलियां
चाय से गटकवा हाथा जोड़
बड़े शहर के अस्पताल में कूच करने की सलाह दी
इतलौती एम्बूलेंस के बारे में पता चला
वह बड़े डाकसाब के परिवार को
पिकनिक पर ले गई है।
ऐसा भी अभिताभ होने से
क्या फायदा देवियों सज्जनों
थिएटर डीवीडी के दर्शकों
आपको रोता बिलखता छोड़
मैं मरने लगू और आईसीयू में
भरती किए जाने के बजाए
बोलेरो वाले से हाथा जोड़ी के बीच
विकल्प हो भी क्या सकता है
सिवा मेरे मर जाने के ।
अभिताभ नहीं बन कर मैंने ठीक किया
यदि खुदा के फजल से अभिताभ
हो गया होता तो मेरे गुजरने पर
ऐश्वार्याजी की आंखें रो रो टपक पड़ती
यह अभिताभ को ही गंवारा नहीं
तब भला मुझ नाचीज को कैसे होता
अतएव अभिताभ नहीं होने का
फैसला अंततोगत्वा सुखद रहा
देवियों सज्जनों मेरा अभिताभ होना
उक्त हालात की वजह से मुल्तवी रहा ।
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